Full Shloka

The Shloka

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अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।

हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥

वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम् ।

चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।

नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥

गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।

रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥

करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम् ।

वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥

गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।

सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥

गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।

दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥

गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।

दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥

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Meaning / Summary

मधुराष्टकम् का महत्व इसकी गहन भक्ति भावना में निहित है। यह भक्तों को भगवान कृष्ण के हर पहलू में दिव्यता को देखने, उनकी पूर्ण पूर्णता और आकर्षण को पहचानने की शिक्षा देता है। यह भगवान के ‘माधुर्य’ (मिठास) पर ध्यान केंद्रित करके प्रेम और शरणागति (भक्ति) की गहरी भावना विकसित करने में मदद करता है, जिससे भक्ति एक आनंदमय और सुखद अनुभव बन जाती है। यह पुष्टिमार्ग के दर्शन को उजागर करता है जहाँ भक्ति सहज और आनंदमय होती है, जिससे परमात्मा के साथ एक अंतरंग संबंध बनता है।

मधुराष्टकम् श्री वल्लभाचार्य द्वारा रचित आठ श्लोकों का एक भक्तिमय स्तोत्र है, जो भगवान कृष्ण के दिव्य माधुर्य का वर्णन करता है। प्रत्येक श्लोक यह दोहराता है कि कृष्ण से संबंधित सब कुछ, जिसमें उनका रूप, लीलाएँ, वचन और कार्य शामिल हैं, अत्यंत मधुर और मनमोहक हैं। यह कृष्ण के अंतर्निहित आकर्षण और सुंदरता का जश्न मनाता है, इस बात पर जोर देता है कि उनका पूरा अस्तित्व परम आनंद का स्रोत है।

The significance of Madhurashtakam lies in its profound devotional sentiment. It teaches devotees to perceive the divine in every aspect of Lord Krishna, recognizing His absolute perfection and allure. It helps cultivate a deep sense of love and surrender (bhakti) by focusing on the ‘madhurya’ (sweetness) of the Lord, making devotion a joyful and delightful experience. It highlights the philosophy of “Pushtimarg” where devotion is spontaneous and joyful, leading to an intimate relationship with the divine.

Madhurashtakam is an eight-verse hymn composed by Shri Vallabhacharya, describing the divine sweetness of Lord Krishna. Each verse reiterates that everything pertaining to Krishna, including His form, pastimes, words, and activities, is utterly sweet and enchanting. It celebrates the inherent charm and beauty of Krishna, emphasizing that His entire being is a source of supreme bliss.